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निर्दोष व्यक्ति जेल भुगतता है और गुन्हेगार मौज उडाता है, तब इसमें न्याय कहा रहा| दादाश्री की यह अनमोल खोज है की कुदरत कभी अन्यायी हुई ही नहीं है। कुदरत न्याय स्वरूप है। इस सूत्र का जितना उपयोग जीवन में होगा, उतनी ही शांति बढेगी|अधिक जानने के लिए पढ़े
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